Monday, February 21, 2011

ब्याज रहित आर्थिक व्यवस्था के फायदे

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मलयेशिया दौरे के दौरान वहां के प्रधानमंत्री दातु नजीब बिन तुन हाजी अब्दुल रज्जाक ने इसलामी बैंकिंग की महत्ता को उजागर करते हुए उसे आर्थिक मंदी से उबरने का विकल्प बताया। जिस पर प्रधानमंत्री ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से इन पर विचार कर सभावनाएं तलाश करने का भरोसा दिलाया है। बहरहाल, आरबीआई के वर्तमान नियमों के तहत इसलामी कानून पर आधारित ब्याज रहित प्रणाली की कोई व्यवस्था नहीं है। वर्ष 2004 में संप्रग सरकार ने सत्ता संभालने के बाद आरबीआई के ऑपरेशन मैनेजर आनंद सिंह की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी, जिसमें देश-विदेश के आर्थिक विशेषज्ञ शामिल थे। उस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया कि देश में इसलामी बैंकिग के लिए वर्तमान कानून में काफी संशोधन करना होगा, जो संभव नहीं है।
इसके बाद एक दूसरी कमेटी प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार रघुराजन राम की अध्यक्षता में गठित की गई। कमेटी में विभिन्न बैंकों के प्रतिनिधियों सहित आर्थिक विशेषज्ञ शामिल थे।

इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ब्याज रहित प्रणाली का स्वागत करते हुए इसे शुरू करने का सुझाव दिया, लेकिन सरकार इस पर मौन है। आम तौर पर इस प्रणाली को इसलामी बैंकिग के नाम से प्रचारित किया जाता है, लेकिन रघुराजन कमेटी ने ब्याज रहित शब्दावली का इस्तेमाल किया है। ब्याज रहित बैंकिंग प्रणाली इसलामी सिद्धांतों पर आधारित व्यवस्था है और अरब जगत में तेल की खोज के बाद यह शुरू हुई। इसमें दरअसल ब्याज की कोई व्यवस्था नहीं है। इस प्रणाली का बुनियादी मकसद आर्थिक रूप से लोगों को शोषित होने से बचाना और दौलत को एक हाथ में जमा होने से रोकना है।
ब्याज रहित बैंकिंग प्रणाली में निवेशकर्ता को ब्याज नहीं दिया जाता है, बल्कि लाभ या हानि की सूरत में उसका हिस्सा तय किया जाता है। मुसलमान, जिनकी आबादी अपने देश में 15 फीसदी है, केवल ब्याज के चलते बैंकों या वित्तीय संस्थानों में निवेश नहीं करते, क्योंकि इसलाम ने ब्याज को हराम बताया है। हालांकि ऐसा नहीं कि यह व्यवस्था केवल मुसलमानों के लिए ही उपयोगी होगी। इसका लाभ समाज के सभी वर्गों को होगा, क्योंकि ब्याज के नाम पर लोगों का खूब शोषण होता है। एक अनुमान के मुताबिक, केरल में पांच हजार करोड़ से ज्यादा का निवेश ऐसा है, जो बैंकों में पड़ा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इन रकमों के मालिक ब्याज वाले कारोबार में अपना पैसा नहीं लगाना चाहते हैं। लिहाजा यह पैसा बाजार में नहीं आ रहा है।
वर्ष 2007-08 के बजटीय आंकड़ों से यह खुलासा हुआ कि देश का हर नागरिक 22,000 रुपये का कर्जदार है। विद्रूप है कि यह पैसा उसने नहीं लिया, सरकार ने लिया है। सरकार पर उसकी देनदारी है, जिसकी भरपाई वह टैक्स लगाकर करेगी। यदि इस कर्ज की समीक्षा की जाए, तो इसमें अधिकतर वह राशि है, जो विदेशी कर्ज को समय पर अदा न करने की सूरत में ब्याज के रूप में लगी है। आलम यह है कि एलआईसी जैसी ब्याज देने वाली कंपनी भी मुसलिम देशों में ब्याज रहित बीमा योजनाएं पेश कर रही हैं, लेकिन अपने देश में यह संभव नहीं हो पा रहा है।
ब्याज रहित बैंकिंग प्रणाली की लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यह विश्व के विकसित मुल्कों में भी सफलतापूर्वक काम कर रही है। फ्रांस के अखबार चैलेंज ने अपने संपादकीय में लिखा है, ‘वर्तमान ब्याज आधारित पूंजीवाद व्यवस्था दुनिया को तबाही की ओर ले जा रही है। लिहाजा आर्थिक मंदी से निकलने के लिए कुरआन शरीफ का अध्ययन आवश्यक है।’
आज विश्व के करीब 500 इसलामी बैंकों द्वारा वार्षिक 1,000 अरब डॉलर का कारोबार होता है। 2020 तक इसके 4,000 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। यदि अपने देश में यह प्रणाली शुरू की जाती है, तो इस पूंजी का कुछ हिस्सा इधर भी आ सकेगा, जो अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ समाज को शोषण से भी बचाएगा। यह खुशी की बात है कि केरल उच्च न्यायालय ने इसलामी बैंक खोलने की मंजूरी देकर इस राह को और आसान बना दिया है।

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